ना शब होए और ना दिन चढ़े,
तड़पता हुआ बेचारा क्या करे।
ना मुकम्मल लफ्ज़ मिलें कोई,
दिल की बाते कहने से दिल डरे।
सुकून नहीं मिले उसकी यादों से,
कोई आहिस्ता आहिस्ता ऐसे मरे।
इन आखों से आँसू ऐसे बहें कि,
जैसे किसी पेड़ से सूखे पत्ते झड़े।
इस रोग की ना दवा ना दुआ कोई,
"निक्क" इश्क़ का रोग पीछे ना पड़े।
स्वरचित : निखिल घावरे "निक्क सिंह निखिल"
भोपाल (मध्यप्रदेश)
दिनाँक : 30 जून 2023©
Gunjan Kamal
03-Jul-2023 06:43 AM
👏👌
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Abhinav ji
01-Jul-2023 08:10 AM
Very nice 👍
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nikksinghnikhil
01-Jul-2023 10:59 AM
Thank you
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
01-Jul-2023 07:46 AM
सुन्दर सृजन
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nikksinghnikhil
01-Jul-2023 10:59 AM
जी धन्यवाद
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